सुला कर तेज़ धारों को किनारो तुम न सो जाना
रवानी ज़िंदगानी है तो धारो तुम न सो जाना
मुझे तुम को सुनानी है मुकम्मल दास्ताँ अपनी
अधूरी दास्ताँ सुन कर सितारो तुम न सो जाना
तुम्हारे दायरे में ज़िंदगी महफ़ूज़ रहती है
निज़ाम-ए-बज़्म-ए-हस्ती के हिसारो तुम न सो जाना
तुम्हीं से जागता है दिल में एहसास-ए-रवा-दारी
क़याम-ए-रब्त-ए-बाहम के सहारो तुम न सो जाना
अगर नींद आ गई तुम को तो चश्मे सूख जाएँगे
कभी ग़फ़लत में पड़ कर कोहसारो तुम न सो जाना
तुम्हीं से बहर-ए-हस्ती में रवाँ है कश्ती-ए-हस्ती
अगर साहिल भी सो जाएँ तो धारो तुम न सो जाना
सदा-ए-दर्द की ख़ातिर तुम्हें 'कौसर' ने छेड़ा है
शिकस्ता-साज़ के बेदार तारो तुम न सो जाना
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