ज़ख़्म है दर्द है दवा भी है
जैसे जंगल है रास्ता भी है
यूँ तो वादे हज़ार करता है
और वो शख्स भूलता भी है
हम को हर सू नज़र भी रखनी है
और तेरे पास बैठना भी है
यूँ भी आता नहीं मुझे रोना
और मातम की इब्तिदा भी है
चूमने हैं पसंद के बादल
शाम होते ही लौटना भी है
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