दोस्ती हो गई है ख़ल्वत से

  - Achyutam Yadav 'Abtar'

दोस्ती हो गई है ख़ल्वत से
चाहता था यही मैं मुद्दत से

यूँ किया सौदा मैंने फ़ुर्क़त से
नाम तेरा मिटाया हर ख़त से

है कहाँ वक़्त इक कुली को जो
बच्चों को देख पाए फ़ुर्सत से

तंग-दस्ती की देन है कि वो शख़्स
गुल चुराता है मेरी तुर्बत से

कोई समझा नहीं शजर के दुख
छाँव सबने ख़रीदी दौलत से

मुश्किलें ज़ीना चढ़ती हैं जब भी
हौसले कूद जाते हैं छत से

तुम बने हो मिरे लिए अबतर
ये सदा आ रही है जन्नत से

  - Achyutam Yadav 'Abtar'

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