हम-सफ़र तो चाहिए ऐसा जो शहज़ादा हो - Achyutam Yadav 'Abtar'

हम-सफ़र तो चाहिए ऐसा जो शहज़ादा हो
और शहज़ादा भी वो जो उसका दीवाना हो

बिन इजाज़त की तुम्हारी कौन आ सकता है
अब तुम्हीं इस दिल की चाबी और तुम्हीं ताला हो

मेरा क़ातिल बन रहा है इस तरह से मासूम
जैसे उसने मुझको नईं मैंने उसे मारा हो

आता है पानी का प्यासा भी इसी दरिया पर
वो भी आता है जो अपने ख़ून का प्यासा हो

वस्फ़ बोलो इसको या कमबख़्ती इक मुफ़्लिस की
जीता है सौ दिन भले ही रिज़्क़ दो दिन का हो

एक बूढ़ा शख़्स गुज़रा सामने से जब आज
तो लगा जैसे कि आने वाला कल गुज़रा हो

साँसों की बख़्शिश अगर हो जाए मुमकिन अबतर
दहर में फिर हर किसी के हाथ में कासा हो

- Achyutam Yadav 'Abtar'
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