जो  मुमकिन  नहीं  हम  वही  माँगते हैं - Achyutam Yadav 'Abtar'

जो  मुमकिन  नहीं  हम  वही  माँगते हैं
जलाने  के   ख़ातिर   नमी   माँगते   हैं

मिरी  चुप्पी  को ज़ख़्मी करते  हैं  पत्थर
ज़हानत  से   हम   दुश्मनी   माँगते   है

बिना  शम्स  रह  सकते  हैं लोग लेकिन
मिरे    चश्मे    तो   रौशनी   माँगते   हैं

भला किससे माँगेंगे वो छाँव कल को
जो पेड़ों से ही दुश्मनी माँगते हैं

परेशान  हैं   मिसरे   इक - दूजे  से  याँ
ग़ज़ल  मुझसे  अब  वो  नई  माँगते  हैं

- Achyutam Yadav 'Abtar'
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