jo qarz mujh pe tha aise chuka diya maine
use mila hua tohfa bata diya maine
dikhaana chahta tha mujhko din mein taare vo
use hi raat mein suraj dikha diya maine
yahi nateeja hua raushni kii sohbat ka
ki taptee dhoop mein saaya ganwa diya maine
kabhi to lagta hai kya khoob shay banaai hai
to lagta hai kabhi ye kya bana diya maine
janab hijr ke taane to suniye kehta hai
tumhein tumhaara hi phir se bana diya maine
agar chunaav kabhi bol paata to kehta
ki khas ke saamne parvat jhuka diya maine
samay se pehle hi barbaad kar liya khud ko
samay ka bhi samay aise bacha diya maine
जो क़र्ज़ मुझ पे था ऐसे चुका दिया मैंने
उसे मिला हुआ तोहफ़ा बता दिया मैंने
दिखाना चाहता था मुझको दिन में तारे वो
उसे ही रात में सूरज दिखा दिया मैंने
यही नतीजा हुआ रौशनी की सोहबत का
कि तपती धूप में साया गँवा दिया मैंने
कभी तो लगता है क्या ख़ूब शय बनाई है
तो लगता है कभी ये क्या बना दिया मैंने
जनाब हिज्र के ताने तो सुनिए कहता है
तुम्हें तुम्हारा ही फिर से बना दिया मैंने
अगर चुनाव कभी बोल पाता तो कहता
कि ख़स के सामने पर्वत झुका दिया मैंने
समय से पहले ही बर्बाद कर लिया ख़ुद को
समय का भी समय ऐसे बचा दिया मैंने
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