किस आरज़ू को भला आसरा दिया जाए
किसे ख़ुद अपने ही दिल में डुबा दिया जाए
हवा से हार गया जंग जो चराग़-ए-गोर
बग़ल में उसकी भी तुर्बत बना दिया जाए
अगर सँवरना लिखा है बदन के हिस्से में
तो क्यों न रूह को भी आइना दिया जाए
याॅं नर्म-दिल हैं बहुत से बशर याॅं हैं नादान
अब ऐसे मौक़े पे किसको दग़ा दिया जाए
शिकस्त खा रहे हैं दिल की सुनते-सुनते हम
सलाह-कार हमें अब नया दिया जाए
जो क़र्ज़ मानके हर चीज़ लौटा दे अबतर
उस एक शख़्स को तोहफ़े में क्या दिया जाए
As you were reading Shayari by Achyutam Yadav 'Abtar'
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