संग-रेज़ो में अचानक ये नमी आई कहाँ से
तीरगी के आशियाँ में रौशनी आई कहाँ से
हो गए शायद मेरी सादा-मिज़ाजी से परेशाँ
आपके लहजे में वरना सादगी आई कहाँ से
देख कर सूरत मेरी कतरा रहे हैं आप शायद
आपके चेहरे पे ये बे-चेहरगी आई कहाँ से
तुम बबूलों ने भी शायद साँप रक्खे है छिपाकर
तुम बबूलों में ये निकहत संदली आई कहाँ से
नौ को नब्बे और फिर नब्बे को कहना नौ सौ नब्बे
तो बताओ आपको जादूगरी आई कहाँ से
फिर अचानक ग़लतियाँ मेरी गिनाने लग गए वो
अक़्ल के अंधों को ये दीदा-वरी आई कहाँ से
ज़ेहन में क्या चल रहा है कब से इनके राम जाने
बे-रुख़ी तो ठीक थी ये दो-रुख़ी आई कहाँ से
जानते है जुड़ न पाएंगे कभी ये टुकड़े वरना
पत्थरों को यक-ब-यक शीशा-गरी आई कहाँ से
क़त्ल करने का इरादा आपका लगता है शायद
आपके बरताव में सादा-दिली आई कहाँ से
आप ही थे जो ख़ुदाओं की ख़ुशामद कर रहे थे
ये बताओ सामने मेरे ख़ुदी आई कहाँ से
शैख़-जी की काफ़िरी को बंदगी आई कहाँ से
आप ही से कह रहा हूँ शैख़-जी ,आई कहाँ से
औरतों का मस'अला हमको नहीं आता समझ में
तापसी आई नहीं चंडालिनी आई कहाँ से
कुछ नहीं बस एक ताज़ा तौर है ये काफ़िरी का
वरना इनकी बद-ज़बाँ पे सरमदी आई कहाँ से
बेकली ही बेकली और कुछ नहीं बस बेकली है
तो कहो 'झाला' ये इतनी बेकली आई कहाँ से
©झाला
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