इश्क़ तो मुझ को भी हर बरस में रहा
मैं तो दीवानों की दस्तरस में रहा
इश्क़ में मुझ को नुक़सान काफ़ी हुआ
मेरा हर ख़्वाब क़ैद-ए-क़फ़स में रहा
As you were reading Shayari by Meem Alif Shaz
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