बे-असर ही रहे हर हकीमी शिफ़ा
इश्क़ वालों को है ये सुख़न ही शिफ़ा
उसके लफ़्ज़ों को मरहम समझते हैं हम
और उसके तबस्सुम को अपनी शिफ़ा
मरने वालों को बस इक तिरी चाह थी
तेरी मौजूदगी ही उन्हें थी शिफ़ा
जब कि तेरी कमी से था नासाज़ ज़ेहन
बिन तिरे किस तरह काम आती शिफ़ा
था पता होगा तुम बिन गुज़ारा नहीं
हमने सो फिर नहीं आज़माई शिफ़ा
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