वो तकल्लुफ़ भी करे क्यों जब भरोसा कर रखा है

  - Muntazir shrey

वो तकल्लुफ़ भी करे क्यों जब भरोसा कर रखा है
सोच कर ही उस ने कुछ शाने पे मेरे सर रखा है

हम शिफ़ा-आदी नहीं कोई करे जो ग़म-गुसारी
हमने हर उस शख़्स का ही नाम चारा-गर रखा है

हैं निहाँ उस आश्ना-ए-राज़ से जज़्बात मेरे
हमने फिर इक तोहफ़ा जिसके वास्ते ले कर रखा है

वादा-ए-फ़र्दा पे ही इमरोज़ हैं बातें यक़ीं की
यूँ अगरचे कौन रखता है भरोसा पर रखा है

  - Muntazir shrey

More by Muntazir shrey

As you were reading Shayari by Muntazir shrey

Similar Writers

our suggestion based on Muntazir shrey

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari