वो तकल्लुफ़ भी करे क्यों जब भरोसा कर रखा है
सोच कर ही उस ने कुछ शाने पे मेरे सर रखा है
हम शिफ़ा-आदी नहीं कोई करे जो ग़म-गुसारी
हमने हर उस शख़्स का ही नाम चारा-गर रखा है
हैं निहाँ उस आश्ना-ए-राज़ से जज़्बात मेरे
हमने फिर इक तोहफ़ा जिसके वास्ते ले कर रखा है
वादा-ए-फ़र्दा पे ही इमरोज़ हैं बातें यक़ीं की
यूँ अगरचे कौन रखता है भरोसा पर रखा है
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