सुर्ख़-फूलों के हार हैं हम लोग
लोग कहते हैं ख़ार हैं हम लोग
अपने खूँ से चमन को सींचा है
फिर भी बे-एतिबार हैं हम लोग
सर-ज़मीन-ए-वतन गवाह रहे
मुल्क के पासदार हैं हम लोग
तू तो यरमूक जानती है हमें
किस क़दर जाँ-निसार हैं हम लोग
चश्म-ए-बद-बीन से न देख हमें
यार उल्फ़त-शिआर हैं हम लोग
हम गदा हैं रसूल-ए-अरबी के
या'नी के ताजदार हैं हम लोग
हम से ही रौनक़-ए-चमन 'ज़ामी'
सच है जान-ए-बहार हैं हम लोग
लोग कुछ भी कहें मगर 'ज़ामी'
बा-सफ़ा बा-वक़ार हैं हम लोग
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Parvez Zaami
our suggestion based on Parvez Zaami
As you were reading Ulfat Shayari