रगड़ रगड़ के जो एड़ियों को अक़ीदे चक्कर लगा रहे हो
अजीब दुंबे हो ख़्वाह मख़ाह में बुला रही क्यों ही जा रहे हो
मज़ाक़ जानिब तुम्हारे करके वो हर सखी को बता रही है
ये देखो जाहिल गॅंवार आशिक़ है अपनी तफ़री करा रहे हो
ज़रा सी ग़ैरत की फाॅंक फाॅंको अमाॅं मियाॅं तुम ये बात समझो
बनो हो सैयाँ छबीले जानी यूँ अपने कुनबे सता रहे हो
रक़ीब हम को बता के तुमने बड़ी फ़ज़ीहत उड़ाई बेटा
न जाने कितनों का शोना बाबू जिसे तुम अपना बता रहे हो
हमारी मानो ये काम कर लो कि लेखपाली प्रपत्र भर लो
बनाओ ताज़ीर अपनी ज़ाहिद यूँ अपने सजदे गिना रहे हो
नसीब का ये हिसाब देखो ज़बाॅं से आगे ख़िलाफ़ निकले
जो चाँद चुम्बन में ढूँढते थे उसी को राहें दिखा रहे हो
बहार आई थी बाग़ में जब तो तुमने काँटे चुने थे जानिब
जो फूल मुरझा के गिर चुका है उसी को मज़हब बना रहे हो
ये इश्क़ दुनिया ये नामुरादी हमारी बातों पे ग़ौर कर लो
बचाओ रूहों का ताज तर्ज़ा ये फ़र्ज़ अपने भुला रहे हो
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