मुसीबतों में मददगार क्यों नहीं बनते
हक़ीक़तों के परस्तार क्यों नहीं बनते
बरस रहे हैं मुसलसल जो चश्म-ए-गर्दूं से
ये आँसू मिस्ल-ए-शरर-बार क्यों नहीं बनते
बनाते फिरते हो दुनिया को साहिब-ए-किरदार
वो आप साहिब-ए-किरदार क्यों नहीं बनते
सितमगरों के मुक़ाबिल ये दौर-ए-हाज़िर में
जवान आहनी दीवार क्यों नहीं बनते
सवाल करती है तारीख़-ए-मिस्र रोज़ 'शजर'
बताओ रौनक़-ए-बाज़ार क्यों नहीं बनते
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