रब ही जाने क्या हुआ है ख़ैर हो
हर कोई ये कह रहा है ख़ैर हो
मैंने जो बोला था उसकी शान में
उसने वो सब सुन लिया है ख़ैर हो
राह-ज़न ही राह-ज़न हैं चार सू
राह में इक क़ाफ़िला है ख़ैर हो
तैश से जो देखा करता था मुझे
मुस्कुराकर देखता है ख़ैर हो
उसने ख़त भेजा है बरसों बाद में
और ख़त में ये लिखा है ख़ैर हो
अश्कों से दामन को अपने तर किए
रब से वो महव-ए-दुआ है ख़ैर हो
कल तलक जो दुश्मन-ए-जाँ था मेरी
मेरे हक़ में बोलता है ख़ैर हो
मौज़ू-ए-चर्चा है जिसका हुस्न वो
रु-ब-रु-ए आईना है ख़ैर हो
लब नहीं खोले थे जिसने उम्र भर
वो लबों को खोलता है ख़ैर हो
बे वफ़ा इंसान के देखो शजर
होंठो पे लफ़्ज़-ए-वफ़ा है ख़ैर हो
हर घड़ी जो हँसता रहता है शजर
हँसता हँसता रो पड़ा है ख़ैर हो
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