दिल अगर हुस्न की तक़लीद पे अड़ जाएगा
तो समझ लीजिए तकलीफ़ में पड़ जाएगा
इश्क़ का बाग़ है आबाद उजड़ जाएगा
तुमसे बिछड़ा तो शजर ख़ुद से बिछड़ जाएगा
रोज़ के जैसे ही ये फिर से हवा का झोंका
ख़ाक सहरा की मिरे मुँह पे रगड़ जाएगा
देखते रहना मिरे यार ज़मीन-ए-दिल से
ख़ैमा-ए-इश्क़ किसी रोज़ उखड़ जाएगा
जानता हूँ मैं तुझे अच्छे से जाते जाते
ज़ेहन को याद की रस्सी से जकड़ जाएगा
आपकी ज़ुल्फ़ अगर आई परेशानी में
जान-ए-जाँ शहर का माहौल बिगड़ जाएगा
चंद रुपयों के लिए ख़ाक सी दौलत के लिए
इक बरादर ही बरादर से झगड़ जाएगा
प्यार का रोग अगर दिल को तिरे लग जाए
जिस्म से दिल के 'शजर' माँस उधड़ जाएगा
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