दिल से दिमाग़ से उसे मन से निकाल दूँ
इक बे वतन को फिर से वतन से निकाल दूँ
ख़ुद अपनी रूह अपने बदन से निकाल दूँ
यानी मैं ख़ुद को शहर-ए-सुख़न से निकाल दूँ
सय्याद लूट लेगा चमन की कशिश मेरे
सय्याद को मैं अपने चमन से निकाल दूँ
रोता है दिल ये दार-ओ-रसन में पड़ा हुआ
दिल को मैं अपने दार-ओ-रसन से निकाल दूँ
ऐ चारासाज़-ए-इश्क़ परेशान हूँ बता
दिल से चुभन या दिल को चुभन से निकाल दूँ
बस्ती में हुस्न वालों की फिर दिल लगाऊँगा
पहले मैं दिल को ज़ख़्म-ए-कुहन से निकाल दूँ
अर्श-ए-बरी से फर्श पे लाऊँगा तोड़कर
सूरज क़मर को पहले गहन से निकाल दूँ
जीते जी आप मेरी अयादत को आओगे
क्या ये ख़्याल अपने ज़ेहन से निकाल दूँ
शायद सुकून-ए-क़ल्ब मिले थोड़ा सा मुझे
मैं गर लिबास-ए-ग़म को जो तन से निकाल दूँ
बन जाएगा ये लफ़्ज़-ए-क़फ़न लफ़्ज़-ए-फ़न शजर
गर हर्फ़-ए-क़ाफ लफ़्ज़-ए-क़फ़न से निकाल दूँ
मुर्शिद बना हुआ है शजर रौनक़-ए-सहन
कैसे शजर को दिल के सहन से निकाल दूँ
Read Full