नग्मा-ए-इश्क़ गुनगुनाते रहो
परचम-ए-इश्क़ को उठाते रहो
रस्म-ए-शब्बीरी को निभाते रहो
राह-ए-हक़ में गले कटाते रहो
यूँ ही शब भर हमें सताते रहो
ख़्वाब में आप आते जाते रहो
दरमियाँ उल्फ़ते बढ़ाते रहो
हमसे रूठो हमें मनाते रहो
हमसे मिलते रहो गले हमदम
और हमको गले लगाते रहो
हम तुम्हें देखें मुस्कुराते रहें
तुम हमें देखो मुस्कुराते रहो
ख़ूबसूरत सी अपनी आँखों में
आप सपने मेरे सजाते रहो
दिल दुखाना तुम्हारा पेशा है
तो मेरे दिल को तुम दुखाते रहो
चंद दिन की है ज़िंदगानी मियाँ
इसमें हँसते रहो हँसाते रहो
आज की शब है शब इबादत की
आज जगते रहो जगाते रहो
यार मेरे ये इक सियासत है
इश्क़ करते रहो छुपाते रहो
ज़िक्र करते रहो शजर का मेरे
उसकी ग़ज़लें मुझे सुनाते रहो
Read Full