इश्क़ का शहर फिर आबाद करूँगा यारों
ख़ुद को मैं इश्क़ में फ़रहाद करूँगा यारों
ये जो इल्हाद ज़माने पे हुआ है तारी
दूर दुनिया से ये इल्हाद करूँगा यारों
इश्क़ की क़ैद में दम घुटने लगा है दिल का
दिल को इस क़ैद से आज़ाद करूँगा यारों
क़ैस की तर्ज़ पे एक रोज़ मोहब्बत में सुनो
मैं भी सेहरा कोई आबाद करूँगा यारों
देखने वाले मुझे देखते रह जाएँगे
ख़ुद को इस तरह से बर्बाद करूँगा यारों
ख़ून थूकेगी दहन से वो हर एक हिचकी पर
इतनी शिद्दत से उसे याद करूँगा यारों
परचम-ए-इश्क़ को लहराऊँगा बस्ती बस्ती
और मंज़र को मैं नौशाद करूँगा यारों
निस्बत-ए-इश्की को सर शार चढ़ाने के लिए
ख़त्म ये बीच से अब आद करूँगा यारों
वादा करता हूँ शजर की तरह गज़लें लिखकर
दिल-ए-नाशाद को मैं शाद करूँगा यारों
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