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क्यों किसी से करे रंजिशें क्यों किसी से अदावत करें - Mohammad Aquib Khan

क्यों किसी से करे रंजिशें क्यों किसी से अदावत करें
जो मेरा था मेरा ना हुआ क्या किसी से शिकायत करें

खूँ के आँसू रुलाता रहा तीर दिल पर चलाता रहा
इश्क़ ने ज़ुल्म इतने किये कैसे इसकी हिमायत करें

प्यार के वास्ते ना सही एक मेरी ख़ुशी के लिए
आपसे है यही इल्तिजा बस जनाज़े पे शिरकत करें

ये भी हो सकता है छीन ले उसको ख़ुद के लिये या तो फिर
जो हुआ सो हुआ बोलकर उम्र भर हम नदामत करें

इस ज़मीं पर ही पैदा हुए इस ज़मीं पर ही मरना है अब
है ये मुमकिन नहीं हुक्मराँ के कहीं और हिजरत करें

बाद तकसीम के रात भर हम ये सजदे मे कहते रहे
ऐ ख़ुदा मेरे मेहबूब की आँसुओ से हिफ़ाज़त करें

ज़िन्दगी मे फ़क़त इतनी सी कामयाबी मुझे चाहिये
लोग दे बद्दुआ मुझको पर जब मिले मुझसे हैरत करें

- Mohammad Aquib Khan

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