आधे सफ़र में दूर से मंज़िल न देखियो
अपने बड़े बुज़ुर्गों की महफ़िल न देखियो
नज़रें न चौंधिया दें चराग़ों की रौशनी
कश्ती में दूर बैठ के साहिल न देखियो
फिर ये न हो कुछ और ही मतलब निकाल ले
तिरछी नज़र से जानिब-ए-जाहिल न देखियो
चेहरा लिबास रंग मकाँ और दौलतें
सब देखियो मगर तू मेरा दिल न देखियो
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