दिन के सूरज को किसी शाम में ढलता देखूँ
इस बहाने ही सही चाँद निकलता देखूँ
तेरी फ़ितरत है भले रंग बदलना लेकिन
मेरी हसरत है तुझे रंग बदलता देखूँ
थी मेरे बाप की मेरी भी यही ख़्वाहिश है
अपने बेटे को सही राह पे चलता देखूँ
तू चले ग़ैर की बाहों का सहारा लेकर
मेरी जानिब मैं तेरा पैर फिसलता देखूँ
कूद जाऊँगा किसी रोज़ समंदर में मैं
कब तलक दूर से पानी को उबलता देखूँ
मेरी कमज़ोर निगाहों की यही इक ज़िद है
तेरे पत्थर से कलेजे को पिघलता देखूँ
ये तमन्ना भी तमन्ना ही रही बचपन से
घर की हालत को किसी रोज़ सँभलता देखूँ
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