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ताज़ा-ब-ताज़ा सुब्ह के अख़बार की तरह  - Aghaz Buldanvi

ताज़ा-ब-ताज़ा सुब्ह के अख़बार की तरह
बेचा गया आज भी हर बार की तरह

क़ातिल हैं मेरी जान का दुश्मन है वो मगर
मिलता है मुझ से जो किसी ग़म-ख़्वार की तरह

एक शय कि जिस का नाम है एहसास ज़ेहन में
पैहम खटकता रहता है इक ख़ार की तरह

मैं अपनी बे-गुनाही पे ख़ुद अपने आप में
रहता हूँ शर्म-सार गुनहगार की तरह

करते हैं बात बात में जज़्बों का मोल-तोल
करते हैं लोग प्यार भी बेव्पार की तरह

चाहत भी उन की होती है नफ़रत लिए हुए
इक़रार भी वो करते हैं इंकार की तरह

'आग़ाज़' हर एक बज़्म में हर इक ज़बान पर
है उस का तज़्किरा मिरे अशआ'र की तरह

- Aghaz Buldanvi

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