शिकस्ता मुज़्महिल रक्खा हुआ है
मोहब्बत ने ख़जिल रक्खा हुआ है
तुझे तो मान रखना था हमारा
मगर तू ने भी दिल रक्खा हुआ है
अगर दाइम नहीं होता है कुछ भी
तो ग़म क्यों मुस्तक़िल रक्खा हुआ है
किसी ने चाँद रक्खा है फ़लक पर
तिरे चेहरे पे तिल रक्खा हुआ है
करम उस का कि मुझ से बद-गुमाँ को
यक़ीं से मुत्तसिल रक्खा हुआ है
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