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है यक़ीं मुझे मिरा हम-नशीं मिरी इस अदा से ख़फ़ा नहीं  - Akhtar Husain Shaafi

है यक़ीं मुझे मिरा हम-नशीं मिरी इस अदा से ख़फ़ा नहीं
न झुकेगा सर दर-ए-हुस्न पर कि सनम सनम है ख़ुदा नहीं

मिरी आरज़ू मिरी आशिक़ी है जुनूँ की शिद्दतों से बरी
ये मज़ाक़-ए-नौ है बड़ा अजब कि मैं सिर्फ़ तुझ पे फ़िदा नहीं

ज़रा दूर हैं मिरी मंज़िलें तू नज़र उठा न ख़फ़ा हो यूँ
मिरे हम-सफ़र मिरा रास्ता तिरे रास्ते से जुदा नहीं

है जो ग़म-ज़दों के दिलों का ग़म वो हमारे दिल का भी ग़म बने
वो अमीर हो कि ग़रीब हो ये बशर बशर से जुदा नहीं

जो ख़ुशी मिली है वो कम सही चलो हम सभी उसे बाँट लें
न पिए किसी का कोई लहू कि लहू है ज़हर दवा नहीं

ये जो दिल है जाम-ए-ग़रज़ नहीं ये मकाँ तवील-ओ-अरीज़ है
किसी दर्द को न मिले जगह मिरा दिल तो ऐसा बना नहीं

मैं फ़रार ज़ात से क्या करूँ है ये ज़ात अपने में काएनात
मुझे फ़ख़्र है मिरी शाइरी मिरी ज़िंदगी से जुदा नहीं

- Akhtar Husain Shaafi

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