तुझ को दिल में बसा के रक्खा है
दूरियों को मिटा के रक्खा है
जब सुना चाँद आने वाला है
दीप घर का बुझा के रक्खा है
जाल उसने बिछा के रक्खा है
रुख़ से सब को लुभा के रक्खा है
जब गया तू मुझे अकेला छोड़
तब से दिल को दुखा के रक्खा है
क्या हुआ है तुझे मोहब्बत में
हाल कैसा बना के रक्खा है
हाँ या ना में जवाब दे दे अब
ख़ामख़ा ही फँसा के रक्खा है
हाल भी तो बता दे अपना तू
मैं बिज़ी हूँ बता के रक्खा है
मानता क्यूँ नहीं तू मेरी बात
काहे इतना सता के रक्खा है
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