कितनी साकित थी बहुत ख़ामोश लगती थी नदी
पास जाकर मैंने जाना कितनी गहरी थी नदी
शहर से जब लौटता था अपनी मिट्टी की तरफ
मेरे गाँव की सड़क के साथ चलती थी नदी
एक दिन ये है मयस्सर चंद कतरे भी नहीं
एक दिन वो थे मेरी बस्ती में बहती थी नदी
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