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हज़ारों ज़ख्म खाकर भी यहाँ पर मुस्कुराना है - Atul Maurya

हज़ारों ज़ख्म खाकर भी यहाँ पर मुस्कुराना है
हमें काटों में रहकर भी सदा ख़ुशबू लुटाना है

अलग अंदाज़ होता है जवानी के दिनों का भी
हवा भी तेज़ है इसमें दिये को भी जलाना है

नज़र आए कहीं यारों तो मुझको इत्तला करना
हथेली खींच कर उसकी मुझे इक दिल बनाना है

कभी बारिश कभी सावन कभी फ़ूलों के गुलशन सा
शुरू में प्यार का मौसम बहुत लगता सुहाना है

वो बुत जिसको तराशा हम ने अपनी ज़िन्दगी देकर
उसे ही याद रखना है उसी को भूल जाना है

अमाँ सीखो रियाज़ी ज़िन्दगी का फ़लसफा हमसे
मोहब्बत जोड़ना इसमें से नफ़रत को घटाना है

- Atul Maurya

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