कलाम-ए-मीर पर कोई सुख़न करता हुआ
हमारे पीर पर कोई सुख़न करता हुआ
तुझे ख़्वाबों में रखने वाले कैसे सहते हैं
तेरी ताबीर पर कोई सुख़न करता हुआ
बहुत लड़ते हुए देखे मगर देखा नहीं
मेरे कश्मीर पर कोई सुख़न करता हुआ
मिसाल-ए-इश्क़ मेरी गर्दन और उसपे तेरी
झुकी श्मशीर पर कोई सुख़न करता हुआ
मेरी तक़दीर जिसमें तू नहीं लिक्खा गया
उसी तक़दीर पर कोई सुख़न करता हुआ
इधर तुझ जिस्म को शय समझे कोई और उधर
तेरी तस्वीर पर कोई सुख़न करता हुआ
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