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घर बनाना बहोत ज़रूरी है  - Fehmi Badayuni

घर बनाना बहोत ज़रूरी है
क़ैदखाना बहोत ज़रूरी है

फूल खिलने से फल उतरते हैं
मुस्कुराना बहोत ज़रूरी है

महफिलें बे-सब‌ब नहीं जमती
एक फसाना बहोत ज़रूरी है

अब के दरवाज़ा खुद सजाया है
तेरा आना बहोत ज़रूरी है

आसमां में ज़मीन वालो का
इक ठिकाना बहोत ज़रूरी है

अब के वो बे-सब‌ब ही रूठा है
अब मनाना बहोत ज़रुरी है

कितने जिंदा हैं हम, पता तो चला
ज़हर खाना बहोत ज़रुरी है

सर उठाने के वास्ते "फ़हमी"
सर झुकाना बहुत ज़रूरी है

- Fehmi Badayuni

Mehfil Shayari

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