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मौत की सम्त जान चलती रही - Fehmi Badayuni

मौत की सम्त जान चलती रही
ज़िंदगी की दुकान चलती रही

सारे किरदार सो गए थक कर
बस तिरी दास्तान चलती रही

मैं लरज़ता रहा हदफ़ बन कर
मश्क़-ए-तीर-ओ-कमान चलती रही

उल्टी सीधी चराग़ सुनते रहे
और हवा की ज़बान चलती रही

दो ही मौसम थे धूप या बारिश
छतरियों की दुकान चलती रही

जिस्म लम्बे थे चादरें छोटी
रात भर खींच-तान चलती रही

पर निकलते रहे बिखरते रहे
ऊँची नीची उड़ान चलती रही

- Fehmi Badayuni

Hawa Shayari

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