मान रख लो मिरी जाँ मिरी बात का
वक़्त आशिक़ को दे दो मुलाक़ात का
दिन गुज़र जाएगा दौड़ते भागते
कुछ करो फ़ैसला आज की रात का
ज़िंदगी है फँसी बीच मँझधार में
अब सहारा है मुझको तिरे साथ का
साथ भाई का अपने नहीं दे सका
मुझको खा जाएगा दुख इसी बात का
जानना है अगर क़ैद होती है क्या
एक चक्कर लगा लो हवालात का
फूल से तितलियाँ मैं उड़ा दूँ मगर
ख़ून करता नहीं हूँ मैं जज़्बात का
जीतना हारना सोच की बात है
दोष होता नहीं इसमें हालात का
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