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कहाँ चाहते है कहाँ चले जाते है लोग - Kanor

कहाँ चाहते है कहाँ चले जाते है लोग
राहों में ही भटक जाते है लोग

मंज़िल तक तो कोई क्या पहुँचेगा
जब मंज़िल ही नही बनाते है लोग

तुम तो ख़ूबसूरत हो तुम्हे क्या है
ख़ूबसूरत ही तो भाते है लोग

उसके चेहरे की ताबिश ऐसी है
रह रहके गली में उसकी जाते है लोग

चाँद तारो की ये शिकायत है उससे
लिए उसके उनको तोड़ लाते है लोग

उड़ते है उश्शाक़ हवाँ में परिंदों से
हुस्न वाले जो है बहकाते है लोग

सुनो उसको देख कर क्या होता है
ज़िंदा रहते है और मर जाते है लोग

मिट्टी से बनाते है खिलौने
मिट्टी से ही घर चलाते है लोग

सोना चाँदी हीरे मोती तो नही
मगर चैन से सो जाते है लोग

'कनोर' उससे कईँ ज़ियादा है
जितना तुम्हे बताते है लोग

- Kanor

Manzil Shayari

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