तेरी तस्वीर से भी तेरी खुशबू आती है
वैसी ही आती है जैसी रु-ब-रु आती है
रोक लेता हूँ इसे दिल-ओ-जाँ में घुलने से
मुश्किल तब होती है जब चार-सु आती है
ज़िन्दा लोगो का क्या है काम फिदा होना
लोग कब्र से आ जाते है जब तू आती है
ऐ परिवश तेरे खिड़की से झाँकने पर
दीवानों को इज़हार-ए-आरज़ू आती है
समंदर में भी कु-ब-कु मोती मिलाती है
जो भी तेरे गाँव से आबज़ु आती है
गली में तेरी कोई बूढ़ा क्यूँ नही रहता
देखने से क्या तुझे उम्र-ए-नुमु आती है
आये तो पूरे पैरहन आना मेरे पास
मैं बहकता हूँ जब कोई बे-रफ़ू आती है
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