बहे जो दिल-ओ-दिल में झमेला करेगा क्या
बहुत तेज़ तूफ़ाँ का वो रेला करेगा क्या
अगर इत्तिफ़ाक़न जब हुआ है कहीं ग़ज़्वा
दिखे मौत यूँ ही तब अकेला करेगा क्या
ख़ुदा और ख़ादिम का रहे वास्ता गहरा
ख़ुदाई से मज़हब का वो मेला करेगा क्या
मुसाफ़िर मिले जब भी किसी भेस में कोई
लगे ख़ौफ़ उससे तब अकेला करेगा क्या
सफ़र में मनोहर जब लगे ज़िंदगी क्या है
ख़ुदा भी लिखी नेमत से खेला करेगा क्या
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