उम्र भर ख़्वाब मैं भी सजाता रहा
ख़्वाब में अपने घर को बनाता रहा
ग़म से आवाज़ में छाले भी हो गए
दिल मगर नग़्में ही गुनगुनाता रहा
दुश्मनों ने बहुत तीर दागे मगर
दोस्तों की तरह मुस्कुराता रहा
ज़िन्दगी से गिला कोई करना नहीं
क़ीमती लम्हें मैं भी गँवाता रहा
तेरे जाने से यह हाल मेरा हुआ
रेत पर चेहरा तेरा बनाता रहा
जी लगेगा नहीं क़ब्र में सोच कर
सुर्ख़ आँखों से आँसू गिराता रहा
जिस जगह भी मिला कोई प्यासा शजर
दोनों हाथों से पानी पिलाता रहा
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