शबो रोज़ की चाकरी ज़िन्दगी की
मयस्सर हुईं रोटियाँ दो घड़ी की
नहीं काम आएँ जो इक दिन मशीनें
ज़रूरत बने आदमी आदमी की
कि कल शाम फ़ुरसत में आई उदासी
बता दी मुझे क़ीमतें हर खुशी की
किया क्या अमन जी ने बाइस बरस में
कभी जी लिया तो कभी ख़ुदकुशी की
ग़मों को ठिकाने लगाते लगाते
घड़ी आ गयी आदमी के ग़मी की
ये सारी तपस्या का कारण यही है
मिसालें बनें तो बनें सादगी की
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