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Top 20
Khat Shayari
लिखा है एक ख़त मैंने तुम्हारे नाम
जिस पर सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखा है
ना तुम्हारा पता लिखा है, ना कोई बात
लिखा है तो सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखा है
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Animesh Choubey
2
20
हम कुछ ऐसे उसके आगे अपनी वफ़ा रख देते हैं
बच्चे जैसे रेल की पटरी पर सिक्का रख देते हैं
तस्वीर-ए-ग़म, दिल के आँसू, रंजो-नदामत, तन्हाई
उसको ख़त लिखते हैं ख़त में हम क्या क्या रख देते हैं
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Subhan Asad
6
19
ख़त लिफ़ाफ़े में ग़ैर का निकला
उस का क़ासिद भी बे-वफ़ा निकला
जान में जान आ गई यारो
वो किसी और से ख़फ़ा निकला
शेर नाज़िम ने जब पढ़ा मेरा
पहला मिस्रा ही दूसरा निकला
फिर उसी क़ब्र के बराबर से
ज़िंदा रहने का रास्ता निकला
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Fehmi Badayuni
3
18
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त
लोग हर बात का अफ़्साना बना देते हैं
ये तो दुनिया है मिरी जाँ कई दुश्मन कई दोस्त
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त
याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त
अब भी आए हो तो एहसान तुम्हारा लेकिन
वो क़यामत जो गुज़रनी थी गुज़र भी गई दोस्त
तेरे लहजे की थकन में तिरा दिल शामिल है
ऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त
बारिश-ए-संग का मौसम है मिरे शहर में तो
तू ये शीशे सा बदन ले के कहाँ आ गई दोस्त
मैं उसे अहद-शिकन कैसे समझ लूँ जिस ने
आख़िरी ख़त में ये लिक्खा था फ़क़त आप की दोस्त
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Ahmad Faraz
9
17
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए
कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में
इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए
उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए
ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए
मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए
कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए
'अंजुम' तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए
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Anjum Rehbar
11
16
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया
ये तिरा ख़त तो नहीं है कि जिला भी न सकूँ
मिरी ग़ैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उस ने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ
फल तो सब मेरे दरख़्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमज़ोर हैं शाख़ें कि हिला भी न सकूँ
इक न इक रोज़ कहीं ढूँड ही लूँगा तुझ को
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ
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Rahat Indori
4
15
तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ
तअ'ज्जुब है मैं ऐसा कर रहा हूँ
है अपने हाथ में अपना गिरेबाँ
न जाने किस से झगड़ा कर रहा हूँ
बहुत से बंद ताले खुल रहे हैं
तिरे सब ख़त इकट्ठा कर रहा हूँ
कोई तितली निशाने पर नहीं है
मैं बस रंगों का पीछा कर रहा हूँ
मैं रस्मन कह रहा हूँ ''फिर मिलेंगे''
ये मत समझो कि वादा कर रहा हूँ
मिरे अहबाब सारे शहर में हैं
मैं अपने गाँव में क्या कर रहा हूँ
मिरी हर इक ग़ज़ल असली है साहब
कई बरसों से धंदा कर रहा हूँ
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Zubair Ali Tabish
24
14
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
बताऊँ कैसे वो बहता दरिया
जब आ रहा था तो जा रहा था
कुछ और भी हो गया नुमायाँ
मैं अपना लिक्खा मिटा रहा था
धुआँ धुआँ हो गई थीं आँखें
चराग़ को जब बुझा रहा था
मुंडेर से झुक के चाँद कल भी
पड़ोसियों को जगा रहा था
उसी का ईमाँ बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था
वो एक दिन एक अजनबी को
मिरी कहानी सुना रहा था
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
ख़ुदा की शायद रज़ा हो इस में
तुम्हारा जो फ़ैसला रहा था
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Gulzar
3
13
इक ख़त मुझे लिखना है
दिल्ली में बसे दिल को
इक दिन मुझे चखना है
खाजा तेरी नगरी का
खुसरो तेरी चौखट से
इक शब मुझे पीनी है
शीरीनी सुख़नवाली
खुशबू ए वतन वाली
ग़ालिब तेरे मरकद को
इक शेर सुनाना है
इक सांवली रंगत को
चुपके से बताना है
मैं दिल भी हूँ दिल्ली भी
उर्दू भी हूँ हिन्दी भी
इक ख़त मुझे लिखना है
मुमकिन है कभी लिक्खूँ
मुमकिन है अभी लिक्खूँ
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Ali Zaryoun
20
12
उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँ
जैसे कल इम्तिहान हो मेरा
Zubair Ali Tabish
10
11
उसने ख़त का जवाब भेजा है
चार लेकिन हैं एक हाँ के साथ
Fehmi Badayuni
37
10
बीते रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
एक उम्मीद बार बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर
अपने बेटे तलाश करती है
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Gulzar
7
9
तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं
ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है
Zubair Ali Tabish
25
8
वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है
फिर अचानक से तिरे ज़ेहन में क्या आता है
आहें भरता हूँ कि पूछे कोई आहों का सबब
फिर तिरा ज़िक्र निकलता है मज़ा आता है
तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं
ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है
जाते-जाते ये कहा उस ने चलो आता हूँ
अब यही देखना है जाता है या आता है
तुझ को वैसे तो ज़माने के हुनर आते हैं
प्यार आता है कभी तुझ को बता आता है
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Zubair Ali Tabish
16
7
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़्साने में
दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़ चले
उन को शायद उम्र लगेगी आने में
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Gulzar
3
6
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
Hastimal Hasti
19
5
अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए
फिर से मिरे चेहरे पे ये दाने निकल आए
माँ बैठ के तकती थी जहाँ से मिरा रस्ता
मिट्टी के हटाते ही ख़ज़ाने निकल आए
मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए
बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए
ऐ रेत के ज़र्रे तिरा एहसान बहुत है
आँखों को भिगोने के बहाने निकल आए
अब तेरे बुलाने से भी हम आ नहीं सकते
हम तुझ से बहुत आगे ज़माने निकल आए
एक ख़ौफ़ सा रहता है मिरे दिल में हमेशा
किस घर से तिरी याद न जाने निकल आए
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Munawwar Rana
8
4
ये तेरे ख़त ये तेरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
मता-ए-जाँ हैं तेरे कौल और क़सम की तरह
गुज़िश्ता साल मैंने इन्हें गिनकर रक्खा था
किसी ग़रीब की जोड़ी हुई रकम की तरह
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Jaun Elia
30
3
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क
कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा
इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल
तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा
दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद
वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा
गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा
खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे
चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा
'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा
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Kaif Bhopali
13
2
कबूतर को पता है घर तुम्हारा
मिलेगा छत पे तुमको ख़त हमारा
Aqib Jawed
15
1
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