कहाँ हम ग़ज़ल का हुनर जानते हैं
मगर इस ज़बाँ का असर जानते हैं
ये वो हुस्न जिसको निखारा गया है
नया कुछ नहीं हम ख़बर जानते हैं
कि है जो क़फ़स में वो पंछी रिहा हो
परिंदें ज़मीं के शजर जानते हैं
फ़क़त रूह के नाम है इश्क़ लेकिन
बदन के हवाले से घर जानते हैं
फ़ुलाँ है फ़ुलाँ का यक़ीं हैं हमें भी
सुनो हम उसे सर-ब-सर जानते हैं
कि अब यूँ सिखाओ न रस्म-ए-सियासत
झुकाना कहाँ है ये सर जानते हैं
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