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Zakhm Shayari
छोड़ कर जाने का मंज़र याद है
हर सितम तेरा सितमगर याद है
अपना बचपन भूल बैठा हूँ मगर
अब भी तेरा रोल नम्बर याद है
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Salman Zafar
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मैं चोट कर तो रहा हूँ हवा के माथे पर
मज़ा तो जब था कि कोई निशान भी पड़ता
Abhishek shukla
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हर एक सितम पे दाद दी हर जख्म पे दुआ
हमने भी दुश्मनों को सताया बहुत दिनों
Nawaz Deobandi
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रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है
कुछ तेरे सितम पे मुस्कुरा लें
Firaq Gorakhpuri
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सितम भी मुझ पे वो करता रहा करम की तरह
वो मेहरबाँ तो न था मेहरबान जैसा था
Anwar Taban
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आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
Iqbal Ashhar
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पूरी कायनात में एक कातिल बीमारी की हवा हो गई
वक्त ने कैसा सितम ढाया कि दूरियाँ ही दवा हो गयीं
Unknown
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ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
ज़ुज़ हरीफ़ान-ए-सितम किस को पुकारा जाए
वक़्त ने एक ही नुक्ता तो किया है तालीम
हाकिम-ए-वक़त को मसनद से उतारा जाए
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Jaun Elia
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गीत लिक्खे भी तो ऐसे के सुनाएँ न गए
ज़ख़्म यूँ लफ़्ज़ों में उतरे के दिखाएँ न गए
आज तक रखे हैं पछतावे की अलमारी में
एक दो वादे जो दोनों से निभाएँ न गए
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Farhat Abbas Shah
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कोई ग़म है न सितम है न ही तन्हाई है
हमको फ़ुर्सत है कि हम याद तुम्हें करते हैं
Akash Rajpoot
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यूँ बे-तरतीब ज़ख़्मों ने बताया राज़ क़ातिल का
सलीके से जो मेरा क़त्ल गर होता तो क्या होता
Vikram Gaur Vairagi
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शाख़-दर-शाख़ होती है ज़ख़्मी
जब परिंदा शिकार होता है
Indira Varma
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ये बात अभी सबको समझ आई नहीं है
दीवाना है दीवाना तमन्नाई नहीं है
दिल मेरा दुखाकर ये मुझे तेरा मनाना
मरहम है फ़क़त ज़ख्म की भरपाई नहीं है
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Vikram Gaur Vairagi
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किस ने हमारे शहर पे मारी है रौशनी
हर इक मकाँ के ज़ख़्म से जारी है रौशनी
Nomaan Shauque
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ये जो हर रोज़ हम मय पी रहे हैं
फक़त ज़ख्मों को अपने सी रहे हैं
Abhishek Bhadauria 'Abhi'
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एक सितम ये कि मुझे मंज़िल का अंदाज़ा नहीं
एक सितम ये कि मेरा वो हम-सफ़र आया नहीं
Hasan Raqim
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मिला है दुख सदा मुझको मेरा दुख से ये नाता है
मिरे ख़ुद घाव में मरहम लगा कर दुख सुलाता है
Tiwari Jitendra
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जितने भी हैं ज़ख़्म तुम्हारे सिल देगी
होटल में खाने का आधा बिल देगी
सीधे मुंह जो बात नहीं करती है जो
तुमको लगता है वो लड़की दिल देगी
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Shadab Asghar
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ज़िंदगी में आई वो जैसे मेरी तक़दीर हो
और उसी तक़दीर से फिर चोट खाना याद है
Rohit tewatia 'Ishq'
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रात के वक़्त मुझे हुस्न-ए-उदासी न दिखा
रात के वक़्त मेरे ज़ख़्म जवाँ होते हैं
Upendra Bajpai
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