Nazm Collection

"ना-शनास दुख"

मैं हँस रहा हूँ
हँसी के पीछे छिपा रहा हूँ
वो हादसे जो मेरी ख़ुशी को नज़र लगाकर गुज़र गए हैं
गुज़रते वक़्तों में मेरे सारे के सारे रंगीन पैरहन भी कुतर गए हैं
बस एक तारीक पैरहन इस बदन के ढकने को बच गया है
उसी पे मैंने दुखों के मोती हँसी की शक्लों में सी दिए हैं
सो कोई देखे तो देखकर ये ज़रूर सोचे
मैं कितना ख़ुश हूँ
और इस ख़ुशी को नज़र लगा दे
वही ख़ुशी जो हक़ीक़तों में दुखों को ढकने की कोशिशें हैं
वो कोशिशें जो ख़ुशी की चाहत में सीढ़ियों पर चढ़ी तो थी पर
किसे पता था वो साँप-सीढ़ी के खेल में थी
सो साँप आया
और अपने अंदर फँसा के उन को ज़मीं पे फिर से उतार लाया
तुम्हीं बताओ मैं इन दुखों को ढकूँ तो कैसे
ये होंठ दोनों सिरों से खिंचकर हँसी की शक्लों में आ तो जाते हैं
पर तुम्हारे विरह के आने से मेरे चेहरे पे दर्द की जो शिकन बनी है
वो मेरे हँसने की कोशिशों से कहाँ छिपी है
Read Full
Lankesh Gautam
0 Likes
"मैं देखता हूँ"

ख़ुद को खोने का उसकी आँखों में डर देखता हूँ
उसके दिल में ख़ुद के लिए मैं एक घर देखता हूँ
कैसे कह दूँ मैं कि लोग यहाँ यादों में मार देते हैं
पर उसकी यादों में ख़ुद को मैं अमर देखता हूँ
डूब जाता हूँ अक्सर उसकी झील सी आँखों में
निगाहों को जब मैं फ़क़त नज़र भर देखता हूँ
यादों का क़ाफ़िला करता है जब भी मुझे परेशाँ
फ़लक में अपलक नीमशब मैं क़मर देखता हूँ
देता हूँ तवज्जोह सदा सूरत के ऊपर सीरत को
हर चीज़ में सीरत मैं शाम-ओ-सहर देखता हूँ
होते अक्सर ख़िज़ाँ में बेरूखे शजर-ए-निस्बत
ख़िज़ाँ में भी वो लहलहाता है शजर देखता हूँ
सोच नज़रिया बर्ताव दुनिया से ख़ास है उसका
ख़ुद पर उसकी सादगी का मैं असर देखता हूँ
सादगी उसकी क़ल्ब में कुछ ऐसा घर कर गई
कि ख़्वाबों ख़्यालों में पहर-दर-पहर देखता हूँ
उसकी नेकदिली की अब क्या मिसाल दूँ आपको
बाग़ में न उससे हसीन मैं गुल-ए-तर देखता हूँ
Read Full
Sandeep dabral 'sendy'
0 Likes
"रोओ लड़को"


रोओ लड़को वर्ना ग़म ये तुम को पत्थर कर डालेगा
गुल के जैसे नाज़ुक मन को चुभता नश्तर कर डालेगा

मर्द नहीं रोते हैं आँसू रोना काम औरतों का है
इसमें तुम न फँसना लड़को कि ये काम लड़कियों का है
रोने पे क्या मर्द या औरत हूक किसी को उठ सकती है
तुम भी खुल के रो सकते हो रोना काम राहतों का है
पलकों को बोझल कर देगा आँखें बंजर कर डालेगा
रोओ लड़को वर्ना ग़म ये तुम को पत्थर कर डालेगा

बैठा है जो दिल की तह में उस ग़म को ऊपर लाओ तुम
पलकों के कोनों से उस का फिर क़तरा-क़तरा बहाओ तुम
सोचो न कोई क्या सोचेगा रोओ गर आता है रोना
खाली कर दो आँखें अपनी अब और न अश्क दबाओ तुम
दिल ज़िंदा कर देगा मुर्दा हँसना दूभर कर डालेगा
रोओ लड़को वर्ना ग़म ये तुम को पत्थर कर डालेगा

कोई देता नहीं सहारा कोई गले लगाता नहीं गर
तो दीवार को काँधा समझो तो दीवार पे ही रख के सर
झर-झर अश्क बहाओ लड़को तुम को बेहद चैन मिलेगा
चेहरे पे इक हँसी खिलेगी मन भी थोड़ा होगा बेहतर
एक उदासी से भर देगा हालत बदतर कर डालेगा
रोओ लड़को वर्ना ग़म ये तुम को पत्थर कर डालेगा
Read Full
Mohit Subran
0 Likes
किताब-ए-दर्द-गीं

मुझे याद है उस ने इक दिन किताबों की सुनसान गलियों में मेरी इन आँखों को अपने मुलाइम लबों से मिलाकर कहा था
मुहब्बत है तुम से
जिसे सुन के सीने में हलचल हुई थी
कोई चोट दिल पे असर कर गई थी
और अंदर ही अंदर लहू बह रहा था
लहू जिस ने इक बार फिर मुझ को ज़िंदा किया था
कोई ख़्वाब सीने में पैदा किया था
वो लड़की मेरे ख़्वाब से भी हसीं थी
वो लड़की कोई आम लड़की नहीं थी
वो लड़की ख़ुदा की मुहब्बत से पैदा हुई थी
वो जन्नत थी जन्नत की आँखें भी वो थी
मेरी ज़िंदगी की दुआएँ भी वो थी
अगर उस की ज़ुल्फ़ों की ख़ुशबू को सोचूँ
तो दिल उस की संदल से महकी लटों से बदन को भिगोने की कोशिश करेगा
और ऐसा न मुमकिन हुआ तो ये नादान रोने लगेगा
बदन उस का तसनीम की सर्द लहरों की तरह रवाँ है
अज़ल से जवाँ है
मुझे याद है उस ने मुझ को छुआ था
और उस लम्स से जिस्म कुछ देर तक तो लरज़ता रहा था
उसी रोज़ उस ने वहाँ ज़ंग-आलूद अलमारियों में हज़ारों किताबें दिखाई थी मुझ को
हज़ारों किताबों के होते हुए भी फ़क़त चित्रलेखा की तारीफ़ की थी
जिसे मैंने पढ़ने का वादा किया था
मगर उस अभागे से दिन चित्रलेखा उन अलमारियों में नहीं थी
उसी तरह जिस तरह वो मेरे नज़दीक होकर भी नज़दीकियों में नहीं थी
वो मुद्दत से वीरान पुस्तक किसी और के बैग में थी
नहीं तो वो शायद कहीं उल्टी रक्खी हुई सड़ रही थी
वो शायद कहीं ताकचों पे जमी गर्द से लड़ रही थी
मगर चित्रलेखा की मानिंद वो भी
किसी और की यादों में खोई हुई थी
मेरे पास थी लेकिन आधी अधूरी
वो शायद किसी हाथ के लम्स से खुलने को मुंतज़िर थी
मगर मेरी क़िस्मत की महरूमी देखो
मेरे हाथ मौजूद होकर भी उस के बदन की सताइश में शामिल नहीं थे
सो उस की मुहब्बत के क़ाबिल नहीं थे
मेरे हाथ पे इतनी मिट्टी लगी थी
कि मैं उस को छूता तो गंदा ही करता
मुझे अपने हाथों से मिट्टी हटाने में अरसा लगा है
और अब इन पे थोड़ी भी मिट्टी नहीं है
मैं अब उस की लहरों में गोते लगाऊँ
तो पानी किसी तौर गंदा न होगा
अगर अब भी वो मेरी जानिब न आई
तो अच्छा न होगा
किताबें
जो उस ने उन अलमारियों में दिखाई थी मुझ को
मैं सब पढ़ चुका हूँ
मेरे हाथ भी वाक़ई साफ़ हैं अब
मगर वो सहीफ़ा वो यज़्दाँ की बेटी
मुहब्बत की गलियों में अब तक नहीं है
अभी तक वो लड़की न खुलने की ज़िद कर के बैठी हुई है
प फिर भी
मैं उस एक मुद्दत से वीरान पुस्तक
उस इक चित्रलेखा को पढ़ने की चाहत में खोया हुआ हूँ
मैं कब से उसी एक लड़की की यादों को दोहरा रहा हूँ
Read Full
Lankesh Gautam
3 Likes
'फिर एक रात यूॅं ही गुज़र जाने को है'

फिर एक रात यूॅं ही गुज़र जाने को है
ख़्वाब सारे टूट कर कहीं सिफ़र जाने को हैं
घोंसला वहम-ओ-गुमान का फिर से उजड़ जाने को है
ज़ख़्म वो पुराने फिर निखर आने को हैं
सारा जहाँ मानो गहरी नींद में सो गया है
ये मन मेरा फिर उन हसीं यादों में खो गया है
क़लम जैसे फिर कोई नज़्म लिखने की ज़िद पे अड़ी है
शरीफ़ दिल की ये आदत आज भी बहुत बुरी है
आँखों से नींद फिर गुम सी गई है
सीने में धड़कन जैसे थम सी गई है
ये चंचल हवाऍं ये गुम सुम घटाऍं
मुझे ख़ुद से कहीं दूर ले जा रही हैं
वो सुनसान सड़कें वो वीरान गलियाँ
मुझे फिर से अपने पास बुला रही हैं
हरेक परवाने को जैसे बस शमा की तलाश है
लहरों के मन में भी कोई अधूरी सी प्यास है
सितारे अब चमक चमक कर थक से गए हैं
पत्ते भी पूरी तरह शबनम से लिपट गए हैं
वक़्त जैसे रेत की तरह फिसल रहा है
चाँद तेजी से फ़लक की ओर बढ़ रहा है
ये सुकून-ए-अँधेरा फिर से उतर जाने को है
ये ख़ूबसूरत नज़ारे फिर से बिखर जाने को हैं
फिर एक रात यूॅं ही गुज़र जाने को है
Read Full
Rehaan
3 Likes
''यक़ीन है मुझे''
यक़ीन है मुझे ख़ुद पर तुझ पर और उस ख़ुदा पर
तू मिलेगा फिर वहीं छोड़ गया था जहाँ पर
मैं एकतरफ़ा प्यार शिद्दत से निभाऊँगा
तू नहीं चाहती तो मेरे मरने की दुआ कर
सब तो मिट्टी होंगे चाहे दफ़नाकर या जलाकर
तू भी मिलेगा फिर वहीं छोड़ गया था जहाँ पर
यक़ीन है मुझे ख़ुद पर तुझ पर और उस ख़ुदा पर
मैं और याद आऊँगा ये मेरा वादा है तुझसे
तू एक बार भूलने की कोशिश तो कर भुलाकर
मर जाऊँगा तो ये जिस्म तो सो जाएगा क़ब्र में
मगर मुहब्बत रूह को लेकर आएगी शायद जगाकर
इसलिए भी मैं ने तुझे जाने दिया था उसके पास
मज़ा ही क्या किसी को पाना वो भी रुलाकर
तू याद भी कर ले तो बस मुझे इश्क़ मुकम्मल है
चल याद कर ले मुझको तू इतनी सी दया कर
मेरा इश्क़ देखकर ख़ुदा अगले जनम ये करेगा
तेरा मेरा नाम साथ लिख देगा उसका मिटाकर
यक़ीन है मुझे ख़ुद पर तुझ पर और उस ख़ुदा पर
तू मिलेगा फिर वहीं छोड़ गया था जहाँ पर
Read Full
100rav
1 Like
"हो रही है इस तरह बर्बाद दुनिया क्यों भला"

हो रही है इस तरह बर्बाद दुनिया क्यों भला
हो नहीं जाती है ये आबाद दुनिया क्यों भला

हर दिशा में एक सी आवाज़ का ही ज़ोर है
मार डालो काट डालो बस यही इक शोर है
जिस तरफ़ भी देखो तुम नफ़रत में अंधी भीड़ है
ख़ूँ ही सर पे ख़ूँ ही लब पे ख़ूँ की प्यासी भीड़ है
क्या हुआ इस को अचानक इस ने बदला रंग क्यों
और आख़िर हो गई जल्लाद दुनिया क्यों भला
हो रही है इस तरह बर्बाद दुनिया क्यों भला
हो नहीं जाती है ये आबाद दुनिया क्यों भला

युद्ध हो तो फिर निपटना चाहती है ढंग से
अब नहीं डरती ये, दंगे या किसी भी जंग से
अब तो खुल के फूँकती है जंग का ही शंख ये
अम्न की जो बात की तो नोच लेगी पँख ये
सख़्त-दिल ज़ालिम सितम-गर जंगली क्यों हो गई
हो गई है इन दिनों सय्याद दुनिया क्यों भला
हो रही है इस तरह बर्बाद दुनिया क्यों भला
हो नहीं जाती है ये आबाद दुनिया क्यों भला

मारने में काटने में ज़ुल्म में मसरूफ़ है
जो भरा है ज़ह्न में, उस ज़ह्र का ये रूप है
आएगी जब होश में होगी ख़बर जब क्या किया
रोएगी पछताएगी अपने किए पर देखना
नफ़रतें हैवानियत ज़ुल्म-ओ-सितम की बेड़ियाँ
तोड़ कर होती नहीं आज़ाद दुनिया क्यों भला
हो रही है इस तरह बर्बाद दुनिया क्यों भला
हो नहीं जाती है ये आबाद दुनिया क्यों भला

है अभी भी वक़्त चाहे तो सँभल सकती है ये
जो भरी नफ़रत है, उल्फ़त में बदल सकती है ये
थूक सकती है ये विष लेकिन उगलती क्यों नहीं
चल रही जिस राह पे उस को बदलती क्यों नहीं
रंजो-ग़म दर्द-ओ-अलम अश्कों का दामन छोड़ कर
आख़िरश होती नहीं पुर-शाद दुनिया क्यों भला
हो रही है इस तरह बर्बाद दुनिया क्यों भला
हो नहीं जाती है ये आबाद दुनिया क्यों भला
Read Full
Mohit Subran
0 Likes
“ग़म”

जाँ तुम्हें दिल से ऐसे भुलाने लगे
जाम पीने लगे और पिलाने लगे

मय को देखा नहीं था कभी इक नज़र
अब तो शाम-ओ सहर डगमगाने लगे

तुम जुदा जो हुए ज़िंदगी से मिरी
साँस सिगरेट ने कुछ मिरी छीन ली

ये धुआँ बन गया फिर मिरी ज़िंदगी
दम लगाने लगे ग़म मिटाने लगे

मैं था उम्दा कभी मैं था सच्चा कभी
लोग कहते हैं ये मैं था अच्छा कभी

एक तुमने मुझे जब बुरा कह दिया
फिर बुरा मुझको सारे बताने लगे

है सताया जो तुमने मुझे इस क़दर
फिर न रहमत की कोई पड़ी इक नज़र

सबने पागल कहा मुझको पागल किया
मुझको मेरे सभी अब सताने लगे

लोग आते हैं बस दिल दुखाते हैं बस
मुझको दिन-रात ग़म अब सताते हैं बस

अब तो हर ग़म से नाज़िम मिलेगा सुकून
छोड़ कर अब लो दुनिया को जाने लगे
Read Full
Najmu Ansari Nazim
1 Like
“हमारा मुल्क हमारा सिपाही”

भला मेरे वतन जितनी ये ख़ुशहाली कहीं होगी
भला मेरे वतन जैसी ये दीवाली कहीं होगी

जहाँ झुकते तिरंगे के लिए मजहब यहाँ सारे
जहाँ जीते जहाँ मरते वतन के वास्ते प्यारे

हिमालय का मुसीबत का झुकाया सर
शहीदों ने बचाया मुल्क को अपना लहू देकर

बुलावा आया जब सरहद का तो देखा
नहीं मुड़कर जवानों ने

कोई माँ को कोई घर को कोई यारों को आशा दे
कोई महबूब को रोता कोई वादा कहीं करके
कहीं फिर गाँव को सूना
अकेला छोड़ आया है

लहू पानी के जैसा यूँ बहाकर जो
यहाँ दुश्मन को तोड़ा और खदेड़ा है

हवाले कर दिया ख़ुद को
सभी वीरों ने भारत को बचाने में
बुझाया अपने घर का दीया यूँ सबने
मेरे भारत को तन मन से सजाने में

कहाँ मेरे वतन जैसा वतन होगा
कहाँ मेरे जवानों सा निडर कोई भला होगा
Read Full
Karan Shukla
0 Likes

LOAD MORE