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Mauj mein hai banjara - Shakeel Jamali

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"आँखें"
मचलती झील सी मानो कोई दरिया है ये आँखें
तुम्हारे दिल को जाने का कोई जरिया है ये आँखें

तुम्हारे बाल ऊपर से ये मानो रश्क करते हैं
जहाँ से ख़ूबसूरत है बहुत बढ़िया हैं ये आँखें

मुझे हैरान करती है मेरे ख़्वाबों में आ कर के
कभी मुझको डराती है मुझे ग़ुस्सा दिखा कर के

ख़ुशी से झूम जाता हूँ अगर वह सामने हो तो
जहाँ में है नहीं दूजा मेरे महबूब सी आँखें

न सोता हूँ न रोता हूँ उसे ही याद करता हूँ
न जाने बन गई कैसे मिरी दुनिया वही आँखें

भरोसा था वही आँखें तो बदली है असंभव था
भला कैसा ये जादू कर गया माशूक की आँखें

नज़र से दिख ही जाता है दिलों में खलबली हो तो
ज़माना पूछता है अब बनेगा आस क्या आँखें

जिसे आँखें दिखाते हो वही तो रहनुमा था फिर
समय बदला तो पत्थर बन गई देखो कई आँखें

कभी तो सोच लो उनका जो तुमसे दूर बैठे हैं
वो आँखें कह रही है देख लेना आएगा इक दिन

जो मुझसे दूर रहता है मेरी आँखें बनेगा वह
वो बूढ़ा आदमी है आस में बैठा हुआ लेकिन

ज़रा देखो न 'रंजन' क्या सहारा दे सकेगा वो
सभी रिश्तों को कर धूमिल चुना जिसने ग़लत आँखें
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ABHISHEK RANJAN
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"नज़र"
नज़र के सामने रहना नज़र के पास ही रहना
नज़र की जो ज़रूरत हो वही अब काम तुम करना

मुझे मालूम है अब ये ठिकाना हो नहीं सकता
नज़र भर देख भी तो लूँ गुजारा हो नहीं सकता

नज़र की बात करता हूँ नज़र पे रात करता हूँ
फ़रेबी हुस्न कहती है तो उस से जा झगड़ता हूँ

मुझे तो शौक़ नज़रों का तुम्हारा क्या करूँ बोलो
नज़र भर देख लो जाना मैं दुनिया छोड़ जाऊँगा

नज़र का खेल है सब कुछ नज़र का जाल है सब कुछ
नज़र देखो गिराता है नज़र देखो उठाता है

नज़र चाहे बिगाड़ेगी नज़र चाहे सुधारेगी
नज़रिया है तुम्हारा क्या नज़र ख़ुद ही बताएगी

नज़र के जाल में पड़ने से बेहतर मर ही जाना है
नज़र गर डालनी है तो चलो पुस्तक पे डालो तुम
सही 'रंजन' कहा तुमने नज़र पे क्या भरोसा है
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ABHISHEK RANJAN
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"गुंडे"
एक वतन में तो कुछ गुंडे रहते थे
उन गुंडों से पहले लोग न डरते थे

गुंडों पर विश्वास किया सत्ता दे दी
अब वो गुंडा तानाशाही करता है

हर सरकारी चीज़ की करता नीलामी
जो बोले फिर उस पर छापा पड़ता है

जागो जनता उसको वापस मत लाना
देखो अब तुम बहकावे में मत आना

वरना फिर देखो अंजाम बुरा होगा
देश की हालत फिर बद से बदतर होगी

है मालूम मुझे कि तुम्हें लड़ाएँगे
तेरे हिस्से की रोटी वो खाएँगे
असली मुद्दे से तुमको भटकाएँगे

ठहरो ज़रा इलेक्शन आने वाला है
सोच समझकर जाओ तुम मतदान करो

भूल न जाना जाओ अपना मत देना
सबको देना गुंडों को न मत देना

वरना 'रंजन' देश नहीं बच पाएगा
डेमोक्रेसी ख़तरे में आ जाएगी
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ABHISHEK RANJAN
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“ख़ुदा अब मुझे चैन मिलता नहीं है”

न आराम अब मुझको इक पल भी यारों
मुझे याद आया था वो कल भी यारों
वो यारों मेरे साथ क्यूँ कर गया ये
कोई तो दवा हो जो आराम दे दे
मैं दफ़्तर के पहिये में पिसने लगा हूँ
हैं हाथों में पत्थर मैं ख़ुद आइना हूँ
वो तारों से आगे मैं धरती के अंदर
बना है वो पागल जो कल था सिकंदर
वो कल था जहाँ पर वो अब भी वहीं है

ख़ुदा अब मुझे चैन मिलता नहीं है

मैं बरसों से दर दर भटकता रहा हूँ
मैं बेचैन भी हूँ मैं बे-आसरा हूँ
नये ज़ख़्म फिर से है लायी मोहब्बत
कि जब से हुई है परायी मोहब्बत
मोहब्बत का मुझको सिला ये मिला है
दिवानों का अब साथ में क़ाफ़िला है
सुकूँ ढूँढते ढूँढते थक गया हूँ
मैं दुनिया से आगे फ़लक तक गया हूँ
ये दिल है कहीं और धड़कन कहीं है

ख़ुदा अब मुझे चैन मिलता नहीं है
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Amaan Pathan
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"जब पापा पापा कहते थे"
जब पापा पापा कहते थे
हम कितने मज़े में रहते थे
जब पापा हमने कहवाई
जाँ फट के गले में है आई
तब हँसते गाते फिरते थे
अब मारे मारे फिरते हैं
न ही कुछ खोने का डर था तब
न ही कुछ पाने की इच्छा थी
तब मन में जहाँ भी आता था
वहीं पे रोया करते थे हम
रोने के लिए भी अब हमको
जा बुक करवानी पड़ती है
जब पापा पापा कहते थे
हम कितने मज़े में रहते थे

स्कूल को हम तुम जाते थे
तब ज़ेब में पैसे रहते थे
अब हाथ सभी के ख़ाली हैं
कैसी यार अब की पढ़ाई है
वो पीठ पे बोझ किताबों का
और जेब में कंचे रहते थे
जब स्कूल से घर आते थे
तो चाॅक चुरा कर लाते थे
गिल्ली डंडा ले लेकर रोज़
हम गलियों गलियों फिरते थे
जब पापा पापा कहते थे
हम कितने मज़े में रहते थे

याद आता है वो दौर हमें
दादी के आँचल में छुपते थे
मम्मी को झूट बताते थे
पापा को झूट बताते थे
फिर होती ख़ूब पिटाई थी
हम अक्कड़ बक्कड़ करते थे
खुट्टल बुट्टल भी करते थे
जिससे भी लड़ाई होती थी
जब पापा पापा कहते थे
हम कितने मज़े में रहते थे

नाना नानी मौसा मौसी
मेहमान जो घर में आते थे
उनकी ज़ेब से पैसे चुराते थे
उनके बैग से चीज़ चुराते थे
वो बचपन याद आता है जब
बारिश में भीगा करते थे
काग़ज़ की नाव बनाकर ख़ूब
आँगन में हमने चलाई थी
जब पापा पापा कहते थे
हम कितने मज़े में रहते थे

मम्मी की आँखों में रहते
ओझल न कहीं फिर होते थे
मम्मी पापा के हिस्से की
हर चीज़ हमीं ने खाई थी
पापा की गोदी में रहते
हम रोज़ दुकानों पर जाते
फिर चीज़ वही मिलती हमको
उँगली जिस पर भी उठाई थी
जब पापा पापा कहते थे
हम कितने मज़े में रहते थे

वो दिन याद आते हैं हमको
जब सबके दिलों में रहते थे
बचपन का फ़साना याद आया
अब आँख मिरी भर आई है
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Prashant Kumar
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"मुहब्बत"
मेरे आँसू कब ठिकाने लगेंगे
इन्हें रुकने मे ज़माने लगेंगे
तुझे चाहा था इस क़दर मैंने
ख़ुद को ही दिए ये दर्द मैंने
मेरी मुहब्बत तुझे क्यूँ रास न आई
इतना रोया की साँस तक न आई
दुआ है तेरी आँखों को भी कोई भाए
तू इज़हार करे और वो तुझे ठुकराए
तू इतनी रोये की तेरी आँखों का पानी सूख जाए
मेरी बद्दुआ है तुझे भी किसी से मुहब्बत हो जाए
मेरी तकलीफ़ तुझे तब समझ आएगी
तो रोना तो चाहेगी मगर रो नहीं पाएगी
अगर आँसू बहेंगे तो बेहिसाब बहेंगे
तू पोछती रहना मगर नहीं रुकेंगे
मुहब्बत ठुकराने का दर्द तब तू जानेगी
एक एक आँसू की क़ीमत तब तू पहचानेगी
दुआ करेगी मेरी हाथों से ये मुहब्बत के लकीरें ही मिट जाएँ
मेरी बद्दुआ है तुझे भी किसी से मुहब्बत हो जाए
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Saurabh Chauhan 'Kohinoor'
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