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दिल का कूचा फिर कभी महका नहीं - Priya omar

दिल का कूचा फिर कभी महका नहीं
बाद तेरे वक़्त भी गुज़रा नहीं

हर किसी से राब्ता रक्खा नहीं
और कोई मुझ तलक रस्ता नहीं

साँस नदियाँ ले रही हैं आख़िरी
दिल समन्दर का मगर भरता नहीं

ज़ोर से पकड़ो न कोई रिश्ता तुम
आब चटके प्यालों में ठहरा नहीं

जिस्म-ओ-जाँ में फिर न आई लर्ज़िशें
लम्स तेरा ले कोई गुज़रा नहीं

बेतअल्लुक़ गुफ़्तगू करती हूँ मैं
जब किसी से दिल मेरा मिलता नहीं

कर रही हो आज भी शिकवा 'प्रिया'
ज़ीस्त ने शायद तुम्हें तरशा नहीं

- Priya omar

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