पूछते हो हिज्र में क्या कर लिया ?
देख लो, रो रो के आधा कर लिया
एक पल पंखे को देखा घूमते
दूसरे पल में इरादा कर लिया
आज क्यूँ काजल लगाया आपने ?
किस लिए ख़ंजर नुकीला कर लिया ?
हँस रहे, वो क़ब्र पर आ कर मेरी
कह रहे, मुझ पर भरोसा कर लिया
शायरी में दर्द लाने के लिए
जान कर के ज़ख़्म गहरा कर लिया
रोक तो पाया नहीं उस शख़्स को
हाँ, मगर अच्छा तमाशा कर लिया
'शाद' अपना नाम मैंने क्या रखा
हर ख़ुशी ने मुझ से झगड़ा कर लिया
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