हवा का एक झोंका ऐसे गुज़रा - Shadab Javed

हवा का एक झोंका ऐसे गुज़रा
कि अपने साथ
उस सूनी सड़क पर
पड़े बेजान
पीले हो चुके
उन आम के
इमली के
गुलमोहर के पत्तों को
जिन्हें हम रोज़ अपने पांव से
बाइक के टायर से
कुचलते देते थे
और इग्नोर कर के आगे
बढ़ जाते थे..
अपने साथ सड़कों के
किनारों पर बने उन
छोटे सूखे नालों में सरका के फेंक आया
ये पत्ते याद दिलवाते हैं उन बीते पलों की
कि जब हम
अपनी धुन में
कान में वो लीड ठूंसे
अपनी मस्ती से गुज़रते थे
किसी जाती हुई स्कूटी पर
शहरीली परी को उसके
शानों से लटकते
बेहया आँचल को
बेहद ध्यान से
तकते हुए और पास आ कर
बोल कर
कि
"देखिए ये खुशनसीब आँचल कहीं ग़लती से टायर में न फंस जाए"
ओवर टेक करते थे
ज़रा सा तेज़ चलकर और
आगे बायीं जानिब
वो चचा जो 10 की सिगरेट
हमको अक्सर 9 में देते थे
और उनकी ये मुहब्बत पांव की ज़ंजीर होती थी
जो हमको रोक देती थी
इन्हें इग्नोर करने से
कि ऑफिस लेट पहुँचो..
डोंट केयर
मगर याँ
एक कश तो खींच ही लो
क़सम से लॉकडाउन क्या हुआ है
ये सब कुछ एक पुरानी फ़िल्म का
एक सीन सा मालूम होता है
कि जिस में हीरो गलती से
बहुत पीछे चला आया
जहाँ पर दूर तक
इंसान क्या हैवान भी
ढूंढे नहीं मिलते
दुआ करता हूँ
हम सब इस बला से
जीत जाएं
हमारे पांव चलती ज़िन्दगी के ब्रेक से हट कर
दुबारा एक्सेलेटर को दबाएं !!

- Shadab Javed
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