हर शय तुझी को सामने लाए तो क्या करूँ
हर शय में तू ही तू नज़र आए तो क्या करूँ
थम थम के आँख अश्क बहाए तो क्या करूँ
रह रह के तेरी याद सताए तो क्या करूँ
ये तो बताते जाओ अगर जा रहे हो तुम!
मुझ को तुम्हारी याद सताए तो क्या करूँ
माना सुकूँ-नवाज़ है हर शय बहार में
तेरे बग़ैर चैन न आए तो क्या करूँ
हर शे'र में सुना तो गया हूँ मैं हाल-ए-दिल
लेकिन तिरी समझ में न आए तो क्या करूँ
अब 'इश्क़ से ज़ियादा ग़म-ए-तर्क-ए-इश्क़ है
ये आग बुझ के और जलाए तो क्या करूँ
दिल हो गया है ख़ूगर-ए-बेदाद 'इश्क़ में
उन की वफ़ा भी रास न आए तो क्या करूँ
उस शर्मगीं नज़र का तसव्वुर अगर 'शमीम'
बिजली दिल-ओ-नज़र पे गिराए तो क्या करूँ
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