दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
वर्ना फ़िक्र-ए-शेर को दो वक़्त का आटा बहुत
काएनात और ज़ात में कुछ चल रही है आज कल
जब से अंदर शोर है बाहर है सन्नाटा बहुत
आरज़ू का शोर बरपा हिज्र की रातों में था
वस्ल की शब तो हुआ जाता है सन्नाटा बहुत
हम से तो इक शेर सुन कर फ़लसफ़ी चुप हो गया
लेकिन उस ने बे-ज़बाँ नक़्क़ाद को चाटा बहुत
दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
आज कल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत
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