दूरी किसी के बीच यहाँ कम से कम रहे
परवरदिगार इश्क़ पे तेरा करम रहे
मैं इश्क़ हूँ भरम है मिरा पर भरम रहे
नफ़रत का अस्ल में कोई क्यूँ मोहतरम रहे
तन्हा सफ़र में लुत्फ़ नहीं ऊब है फ़क़त
लुत्फ़-ए-सफ़र है साथ अगर हम-क़दम रहे
मुमकिन नहीं है फिर भी यही चाहता है दिल
इक शख़्स मेरे पास बना दम-ब-दम रहे
हुस्न-ए-ग़ज़ल, ज़मीन नयी देता हो अगर
फिर तो तमाम उम्र मुझे कोई ग़म रहे
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