तिश्नगी को राह-ए-दरिया जिस क़दर मालूम है
उस क़दर हमको तुम्हारी रहगुज़र मालूम है
सबकी चालें तयशुदा है ज़िन्दगी के खेल में
हम पियादों को भटकना दर-ब-दर मालूम है
गफ़लतों में जी रहे हैं जिनको है मालूम कुछ
और ज़हानत जानती है बस सिफ़र मालूम है
ताजपोशी हो भी सकती है सिपाही की कभी
ये सियासत है इसे ताक़त के सर मालूम है
वक़्त आने पर लहू भी माँगती है सरज़मीं
अम्न के बाशिन्द हैं लेकिन ग़दर मालूम है
उम्र भर की दश्त में ये ढूँढती है मौत को
मौत को इस ज़िंदगी के सारे घर मालूम है
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