कहीं जो कोई हम डगर देखते हैं
वहीं इक सुहाना सफ़र देखते हैं
किसी को नहीं है किसी की ख़बर पर
सभी सबको ही बा-ख़बर देखते हैं
सखी को हमारी नज़र लग न जाए
उसे ख़्वाब में रात भर देखते हैं
कभी जिस जगह रहते थे कृष्ण राधा
चलो प्रेम का वो नगर देखते हैं
कि आगे या पीछे कि ऊपर या नीचे
तू ही दिखती है हम जिधर देखते हैं
बदलते हुए दोस्त के भाव में हम
किसी लड़की का ही असर देखते हैं
कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा हमने
हमारे नयन बस शिखर देखते हैं
मैं तो लड़की की सादगी देखता हूँ
मिरे दोस्त उनका फिगर देखते हैं
नहीं रक्खा लोगों के रंगों में कुछ भी
चलो रेनबो के कलर देखते हैं
बहू बेटी से हैं जो नज़रें चुराते
वो और लड़की को घूर कर देखते हैं
ख़ुदा का भी डर है नहीं उनको जैसे
वो सब क़त्ल भी इस क़दर देखते हैं
हमें रोज़ घर देखने की है आदत
चलो आज साहिल का घर देखते हैं
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