पहले तो कली से इक ज़िन्दगी निकालेंगे
फिर उसी की शाखा से दुश्मनी निकालेंगे
आँखें सूखने लग जाएँगी तब समंदर की
तपती रेत से जिस दिन हम नमी निकालेंगे
अब तलाश बस मरहम की है कोई तो लाओ
ज़ख़्म फिर तो अपना अपना सभी निकालेंगे
कुछ बचा नहीं प्याले में सुराख़ के कारण
इसमें भी सभी प्यासों की कमी निकालेंगे
इन दिनों छिपाती हैं पलकें आँखों का सज्दा
जाने कब वो चश्में इक रौशनी निकालेंगे
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